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December 22, 2023
पशु चिकित्सा नैदानिक परिसर, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय,
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश
भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि के साथ पशुपालन भी आय का अच्छा श्रोत माना जाता है। पशुओं में बाँझपन के कारण पशुपालकों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है । बांझ पशु को पालने से पशुपालक का आर्थिक बोझ बढ़ जाता है इसलिए ज्यादातर देशों में ऐसे जानवरों को बूचड़खानों में भेज दिया जाता है । परन्तु भारत मैं ऐसा संभव नहीं है। बांझपन की वजह से पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता अत्यंत कम हो जाती है। पशुओं में अस्थायी रूप से प्रजनन क्षमता के घटने की स्थिति को बाँझपन कहते है। बाँझपन की स्थिति में दुधारू गाय अपने सामान्य ब्यांत अंतराल (12 माह) को क़ायम नहीं रख पाती । सामान्य ब्यांत अंतराल को क़ायम रखने के लिए पशु ब्याने के बाद 45-60 दिनों के मध्यांतर गर्मी में आ जाना चाहिए और 100 दिनों के भीतर गाभिन हो जाना चाहिए ।
पशुओं में बांझपन के कई कारण हैं जैसे कि बांझपन या गर्भ धारण कर एक बच्चे को जन्म देने में विफलता, मादा में कुपोषण, संक्रमण, जन्मजात दोषों, कुप्रबंधन और अंडाणुओं या हार्मोनों के असंतुलन के कारण हो सकती है।पशुओं में बांझपन का प्रमुख कारण है पोषण की कमी।अधिकाँशतः ऐसा देखा गया है खनिज तत्वोंए और जिंक की कमी के कारण पशु गर्भित नहीं हो पाते हैं।यदि पशु ब्याने के 60 दिनों के बाद भी मद (गर्मी) में नहीं आता है तो रजिस्टर्ड पशु की पशुचिकित्सक से जांच करवा कर उपचार कराना चाहिए
दूधारू पशुओं में बाँझपन के मुख्या कारन कारण एवं निवारण :
(1) जन्मजात बाँझपन या अनुवांशिक बाँझपन
(2) कार्यात्मक बाँझपन
(3) संक्रामक बाँझपन
(4) पोषण एवं प्रबंधन से संबंधित बाँझपन
1. जन्मजात या अनुवांशिक बाँझपन: इस तरह का बांझपन पशु में जन्म के समय से ही व्याप्त रहता है तथा ये रोग पशु को उसके माँ या पिता से भी मिल सकता है । इसके अंतर्गत अंडाशय (ओवरी) का अविकसित होना, अंडाशय में पुटक (फॉलिकल) की संख्या कम होना या पुटक रहित अंडाशय का होना, बैला गाय या फ़्रीमार्टिन की स्थिति होना, प्रजनन अंग का खण्डयुक्त (अधूरा) विकसित होना, द्विलिंग इत्यादि दोष सम्मिलित है ।
इस प्रकार के बांझपन का कोई इलाज नहीं होता है इसलिए पशु को समूह से छांटकर अलग कर देना चाहिए ।
2. कार्यात्मक बाँझपन: इस तरह का बाँझपन पशुओं में अंतःस्रावी (एंडोक्रिनोलॉजिकल) अव्यवस्था या विभिन्न प्रकार के हार्मोन्स की कमी या अधिकता की वजह से होता है । इसके अंतर्गत अप्रत्यक्ष मद, मौन मद, यथार्थ मद में ना आना (ट्रू अनेस्ट्रस), विलंबित डिंबक्षरण (ओवुलेशन),सिस्टिक अंडाशय इत्यादि जैसे दोष सम्मिलित है ।
इसमें रजिस्टर्ड पशु चिकित्सक से सलाह ले कर होरमोन के इंजेक्शन लगवाने चाहिए ।
3. संक्रामक बाँझपन: यह बाँझपन विशिष्ट (स्पेसिफिक) संक्रमण या अनिर्दिष्ट (नॉन स्पेसिफिक) संक्रमण की वजह से होता है । अनिर्दिष्ट संक्रमण अधिकांश पशुओं में अकसर पहले से ही मौजूद होता है । यह संक्रमण संपूर्ण पशु समूह की अपेक्षा अकेले पशु को प्रभावित करता है । अनिर्दिष्ट संक्रमण की वजह से अंडाशय में सूजन, डिंबवाही नलिका में सूजन, गर्भाशयशोथ (बच्चेदानी में सूजन), गर्भाशयग्रीवाशोथ (बच्चेदानी के मुँह में सूजन), योनिशोथ (योनि में सूजन) व गर्भपात जैसी समस्या हो सकती है । विशिष्ट संक्रमण में पशुओं का समस्त समूह प्रभावित हो सकता है । विशिष्ट संक्रमण के अंतर्गत ट्रिकोमोनिआसिस, विब्रिओसिस, ब्रुसलोसिस, ट्यूबरक्लोसिस, आई.पी.वी.-आई.पी.आर., एपीवेग इत्यादि जैसे रोग सम्मिलत है ।
इस प्रकार का बांझपन पशुओं में गलत तरीके एवं अकुशल व्यक्ति से कृत्रिम गर्भाधान करवाने या संक्रमित सांड से गर्भित करवाने से फैलता है । इसलिए पशु को गर्मी में आने के बाद रजिस्टर्ड पशु चिकित्सक से कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए एवं पशुओ के जननांगो के साफ़ सफाई का उचित ध्यान रखना चाहिए । ब्रूसीलोसिस, ट्रैकोमोनिअसिस आदि बीमारियों से ग्रसित पशु को समूह से अलग कर देना चाहिए ।
4. पशुओं में प्रबंधन से संबंधित बाँझपन: बाँझपन का यह कारण सबसे प्रचलित है जो की पोषण संबंधी और मद को उसके सही समय या सही स्थिति को ना पहचानने की वजह से होता है ।
पशु को रजिस्टर्ड पशु चिकित्सक की सलाह लेकर प्रत्येक तीन माह में कृमिनाशक दवापान करना चाहिए । प्रत्येक पशु को प्रतिदिन 40-50 ग्राम मिनरल पाउडर खिलाना चाहिए । पशु के गर्मी में आने के लक्षणों की पहचान सही समय पर करके कुशल पशुचिकित्सक से कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए एवं पशु के खान पान तथा सफाई का उचित ध्यान रखना चाहिए ।
पशुपालको को ध्यान रखने योग्य बातें :
- मादा पशुओं के गर्मी में आने के समयएवं लक्षणों के बारे में पूरी जानकारी एवं अनुभव प्राप्त करना चाहिए ।
- पशु का गर्भाधान कामोत्तेजना अवधि के दौरान की जानी चाहिए।
- कृत्रिम गर्भाधान कुशल पशु चिकित्सक से ही करवाना चाहिए ।
- यदि गर्भाधान सांड से कराते है तो सांड के इतिहास एवं रोगमुक्त होने के बारे में पता करना चाहिए ।
- जो पशु गर्मी में नहीं आते उनकी जाँच कर इलाज किया जाना चाहिए।
- कीड़ों से प्रभावित होने पर पशु चिकित्सक की सलाह पर प्रत्येक तीन महीने में एक बार पशुओं का डीवर्मिंग (कृमिनाशक दवापान ) कराने से उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है ।
- पशुओं संतुलित आहार देना चाहिए जिसमे ऊर्जा के साथ प्रोटीन, खनिज और विटामिन की भरपूर मात्रा होनी चाहिए ।
- गर्भावस्था के दौरान हरे चारे की पर्याप्त मात्रा देने से और उन्हें खाने के बाद देने से नवजात बछड़ों को अंधेपन से बचाया जा सकता है ।
- बछड़े के जन्मजात दोष और संक्रमण से बचने के लिए सामान्य रूप से सेवा लेते समय सांड के प्रजनन इतिहास की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है।